मेरी आँखों से भी इक बार निकल
देखूँ मैं तेरी रवानी पानी
मिर्ज़ा अतहर ज़िया
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मुझ में थोड़ी सी जगह भी नहीं नफ़रत के लिए
मैं तो हर वक़्त मोहब्बत से भरा रहता हूँ
मिर्ज़ा अतहर ज़िया
न इंतिज़ार करो कल का आज दर्ज करो
ख़मोशी तोड़ दो और एहतिजाज दर्ज करो
मिर्ज़ा अतहर ज़िया
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तमाम शहर में बिखरा पड़ा है मेरा वजूद
कोई बताए भला किस तरह चुनूँ ख़ुद को
मिर्ज़ा अतहर ज़िया
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तेरी दहलीज़ पे इक़रार की उम्मीद लिए
फिर खड़े हैं तिरे इंकार के मारे हुए लोग
मिर्ज़ा अतहर ज़िया
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तू ने ऐ वक़्त पलट कर भी कभी देखा है
कैसे हैं सब तिरी रफ़्तार के मारे हुए लोग
मिर्ज़ा अतहर ज़िया
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