तेग़-बर-दोश सुपर हाथ में दामन करदाँ
ये बना सूरत-ए-खूँ-ख़्वार कहाँ जाता है
मीर मोहम्मदी बेदार
टुक ऐ बुत अपने मुखड़े से उठा दे गोशा-ए-बुर्क़ा
कि इन मस्जिद-नशीनों को है दावा दीन-दारी का
मीर मोहम्मदी बेदार
याद करते हैं तुझे दैर-ओ-हरम में शब-ओ-रोज़
अहल-ए-तस्बीह जुदा साहिब-ए-ज़ुन्नार जुदा
मीर मोहम्मदी बेदार
ये भी आना है कोई इस से न आना बेहतर
आए दम भी न हुआ कहते हो जाऊँ जाऊँ
मीर मोहम्मदी बेदार
गर वो बुत-ए-गुलनार-क़बा जल्वा-नुमा हो
दें ख़र्क़ा-ए-इस्लाम को अहल-ए-हरम आतिश
मीर मोहम्मदी बेदार
आप को आप में नहीं पाता
जी में याँ तक मिरे समाए हो
मीर मोहम्मदी बेदार
अबस मल मल के धोता है तू अपने दस्त-ए-नाज़ुक को
नहीं जाने की सुर्ख़ी हाथ से ख़ून-ए-शहीदाँ की
मीर मोहम्मदी बेदार
अगर चली है तो चल यूँ कि पात भी न हिले
ख़लल न लाए सबा तू फ़राग़ में गुल के
मीर मोहम्मदी बेदार
अजब की साहिरी उस मन-हरन की चश्म-ए-फ़त्ताँ ने
दिया काजल सियाही ले के आँखों से ग़ज़ालाँ की
मीर मोहम्मदी बेदार