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एक दिन मुद्दतों में आए हो | शाही शायरी
ek din muddaton mein aae ho

ग़ज़ल

एक दिन मुद्दतों में आए हो

मीर मोहम्मदी बेदार

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एक दिन मुद्दतों में आए हो
आह तिस पर भी मुँह छुपाए हो

आप को आप में नहीं पाता
जी में याँ तक मिरे समाए हो

क्या कहूँ तुम को ऐ दिल ओ दीदा
जो जो कुछ सर पे मेरे लाए हो

दीद बस कर लिया इस आलम का
फिर चलो वाँ जहाँ से आए हो

क्यूँकि तश्बीह उस से दे 'बेदार'
मह से तुम हुस्न में सिवाए हो