ख़ुशबू से किस ज़बान में बातें करेंगे लोग
महफ़िल में ये सवाल तुझे देख कर हुआ
मंसूर उस्मानी
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मुझ से दिल्ली की नहीं दिल की कहानी सुनिए
शहर तो ये भी कई बार लुटा है मुझ में
मंसूर उस्मानी
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पहले तो उस की याद ने सोने नहीं दिया
फिर उस की आहटों ने कहा जागते रहो
मंसूर उस्मानी
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शबनम की जगह आग की बारिश हो मगर हम
'मंसूर' न माँगेंगे दुआ और तरह की
मंसूर उस्मानी
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ये अलग बात कि अल्फ़ाज़ हैं मेरे लेकिन
सच तो बस ये है कि तेरी ही सदा है मुझ में
मंसूर उस्मानी
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