नादाँ से एक उम्र रहा मुझ को रब्त-ए-इश्क़
दाना से अब पड़ा है सरोकार देखना
मह लक़ा चंदा
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संग-ए-रह हूँ एक ठोकर के लिए
तिस पे वो दामन सँभाल आता है आज
मह लक़ा चंदा
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तीर ओ तलवार से बढ़ कर है तिरी तिरछी निगह
सैकड़ों आशिक़ों का ख़ून किए बैठी है
मह लक़ा चंदा
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उन को आँखें दिखा दे टुक साक़ी
चाहते हैं जो बार बार शराब
मह लक़ा चंदा
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