साक़ी है गरचे बे-शुमार शराब
नहीं ख़ुश-तर सिवाए यार शराब
क़त्ल पर किस के आज होती है
तौसन-ए-हुस्न पर सवार शराब
रख करम पर तिरे नज़र मुजरिम
नोश करते हैं बे-शुमार शराब
उन को आँखें दिखा दे टुक साक़ी
चाहते हैं जो बार बार शराब
या अली हश्र में दो 'चंदा' को
आब-ए-कौसर की ख़ुश-गवार शराब
ग़ज़ल
साक़ी है गरचे बे-शुमार शराब
मह लक़ा चंदा