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साक़ी है गरचे बे-शुमार शराब | शाही शायरी
saqi hai garche be-shumar sharab

ग़ज़ल

साक़ी है गरचे बे-शुमार शराब

मह लक़ा चंदा

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साक़ी है गरचे बे-शुमार शराब
नहीं ख़ुश-तर सिवाए यार शराब

क़त्ल पर किस के आज होती है
तौसन-ए-हुस्न पर सवार शराब

रख करम पर तिरे नज़र मुजरिम
नोश करते हैं बे-शुमार शराब

उन को आँखें दिखा दे टुक साक़ी
चाहते हैं जो बार बार शराब

या अली हश्र में दो 'चंदा' को
आब-ए-कौसर की ख़ुश-गवार शराब