आलम तिरी निगह से है सरशार देखना
मेरी तरफ़ भी टुक तो भला यार देखना
नादाँ से एक उम्र रहा मुझ को रब्त-ए-इश्क़
दाना से अब पड़ा है सरोकार देखना
गर्दिश से तेरी चश्म के मुद्दत से हूँ ख़राब
तिस पर करे है मुझ से ये इक़रार देखना
नासेह अबस करे है मनअ मुझ को इश्क़ से
आ जाए वो नज़र तो फिर इंकार देखना
'चंदा' को तुम से चश्म ये है या अली कि हो
ख़ाक-ए-नजफ़ को सुरमा-ए-अबसार देखना
ग़ज़ल
आलम तिरी निगह से है सरशार देखना
मह लक़ा चंदा