सफ़र उलझा दिए हैं उस ने सारे
मिरे पैरों में जो तेज़ी पड़ी है
लियाक़त जाफ़री
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उस आइने में था सरसब्ज़ बाग़ का मंज़र
छुआ जो मैं ने तो दो तितलियाँ निकल आईं
लियाक़त जाफ़री
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उसी के नूर से ये रौशनी बची हुई थी
मिरे नसीब में जो तीरगी बची हुई थी
लियाक़त जाफ़री
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वजूद अपना है और आप तय करेंगे हम
कहाँ पे होना है हम को कहाँ नहीं होना
लियाक़त जाफ़री
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वो हंगामा गुज़र जाता उधर से
मगर रस्ते में ख़ामोशी पड़ी है
लियाक़त जाफ़री
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