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जावेद अख़्तर शायरी | शाही शायरी

जावेद अख़्तर शेर

43 शेर

डर हम को भी लगता है रस्ते के सन्नाटे से
लेकिन एक सफ़र पर ऐ दिल अब जाना तो होगा

जावेद अख़्तर




धुआँ जो कुछ घरों से उठ रहा है
न पूरे शहर पर छाए तो कहना

जावेद अख़्तर




दुख के जंगल में फिरते हैं कब से मारे मारे लोग
जो होता है सह लेते हैं कैसे हैं बेचारे लोग

जावेद अख़्तर




एक ये दिन जब अपनों ने भी हम से नाता तोड़ लिया
एक वो दिन जब पेड़ की शाख़ें बोझ हमारा सहती थीं

जावेद अख़्तर




ग़ैरों को कब फ़ुर्सत है दुख देने की
जब होता है कोई हमदम होता है

जावेद अख़्तर




ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता

जावेद अख़्तर




आगही से मिली है तन्हाई
आ मिरी जान मुझ को धोका दे

जावेद अख़्तर




हम तो बचपन में भी अकेले थे
सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे

जावेद अख़्तर




हर तरफ़ शोर उसी नाम का है दुनिया में
कोई उस को जो पुकारे तो पुकारे कैसे

जावेद अख़्तर