दिन में आने लगे हैं ख़्वाब मुझे
उस ने भेजा है इक गुलाब मुझे
इफ़्तिख़ार राग़िब
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दिल में कुछ भी तो न रह जाएगा
जब तिरी चाह निकल जाएगी
इफ़्तिख़ार राग़िब
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चंद यादें हैं चंद सपने हैं
अपने हिस्से में और क्या है जी
इफ़्तिख़ार राग़िब
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