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दिन में आने लगे हैं ख़्वाब मुझे | शाही शायरी
din mein aane lage hain KHwab mujhe

ग़ज़ल

दिन में आने लगे हैं ख़्वाब मुझे

इफ़्तिख़ार राग़िब

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दिन में आने लगे हैं ख़्वाब मुझे
उस ने भेजा है इक गुलाब मुझे

गुफ़्तुगू सुन रहा हूँ आँखों की
चाहिए आप का जवाब मुझे

वक़्त-ए-फ़ुर्सत का इंतिज़ार करूँ
इतनी फ़ुर्सत कहाँ जनाब मुझे

ज़ोम था बे-हिसाब चाहत है
उस ने समझा दिया हिसाब मुझे

पढ़ता रहता हूँ आप का चेहरा
अच्छी लगती है ये किताब मुझे

लीजिए और इम्तिहान मिरा
और होना है कामयाब मुझे

कोई ऐसी ख़ता करूँ 'राग़िब'
जिस का मिलता रहे सवाब मुझे