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दिल से जब आह निकल जाएगी | शाही शायरी
dil se jab aah nikal jaegi

ग़ज़ल

दिल से जब आह निकल जाएगी

इफ़्तिख़ार राग़िब

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दिल से जब आह निकल जाएगी
जाँ भी हम-राह निकल जाएगी

दिल में कुछ भी तो न रह जाएगा
जब तिरी चाह निकल जाएगी

हम ने समझा था कि कुछ बरसों में
फ़स्ल-ए-जाँ-काह निकल जाएगी

फिर सभी जोड़ के सर बैठे हैं
फिर कोई राह निकल जाएगी

तुम से मिलने की भी कोई सूरत
इंशा-अल्लाह निकल जाएगी

तोड़ कर सारी फ़सीलें 'राग़िब'
फ़िक्र-ए-आगाह निकल जाएगी