माख़ूज़ होगे शैख़-ए-रिया-कार रोज़-ए-हश्र
पढ़ते हो तुम अज़ाब की आयात बे-तरह
हसरत अज़ीमाबादी
भर के नज़र यार न देखा कभी
जब गया आँख ही भर कर गया
हसरत अज़ीमाबादी
काफ़िर-ए-इश्क़ हूँ ऐ शैख़ पे ज़िन्हार नहीं
तेरी तस्बीह को निस्बत मिरी ज़ुन्नार के साथ
हसरत अज़ीमाबादी
इश्क़ में ख़्वाब का ख़याल किसे
न लगी आँख जब से आँख लगी
हसरत अज़ीमाबादी
इस जहाँ में सिफ़त-ए-इश्क़ से मौसूफ़ हैं हम
न करो ऐब हमारे हुनर-ए-ज़ाती का
हसरत अज़ीमाबादी
हक़ अदा करना मोहब्बत का बहुत दुश्वार है
हाल बुलबुल का सुना देखा है परवाने को हम
हसरत अज़ीमाबादी
हम न जानें किस तरफ़ काबा है और कीधर है दैर
एक रहती है यही उस दर पे जाने की ख़बर
हसरत अज़ीमाबादी
गुल कभू हम को दिखाती है कभी सर्व-ओ-समन
अपने गुल-रू बिन हमें क्या क्या खिजाती है बहार
हसरत अज़ीमाबादी
दुनिया का व दीं का हम को क्या होश
मस्त आए व बे-ख़बर गए हम
हसरत अज़ीमाबादी