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हसरत अज़ीमाबादी शायरी | शाही शायरी

हसरत अज़ीमाबादी शेर

25 शेर

माख़ूज़ होगे शैख़-ए-रिया-कार रोज़-ए-हश्र
पढ़ते हो तुम अज़ाब की आयात बे-तरह

हसरत अज़ीमाबादी




भर के नज़र यार न देखा कभी
जब गया आँख ही भर कर गया

हसरत अज़ीमाबादी




काफ़िर-ए-इश्क़ हूँ ऐ शैख़ पे ज़िन्हार नहीं
तेरी तस्बीह को निस्बत मिरी ज़ुन्नार के साथ

हसरत अज़ीमाबादी




इश्क़ में ख़्वाब का ख़याल किसे
न लगी आँख जब से आँख लगी

हसरत अज़ीमाबादी




इस जहाँ में सिफ़त-ए-इश्क़ से मौसूफ़ हैं हम
न करो ऐब हमारे हुनर-ए-ज़ाती का

हसरत अज़ीमाबादी




हक़ अदा करना मोहब्बत का बहुत दुश्वार है
हाल बुलबुल का सुना देखा है परवाने को हम

हसरत अज़ीमाबादी




हम न जानें किस तरफ़ काबा है और कीधर है दैर
एक रहती है यही उस दर पे जाने की ख़बर

हसरत अज़ीमाबादी




गुल कभू हम को दिखाती है कभी सर्व-ओ-समन
अपने गुल-रू बिन हमें क्या क्या खिजाती है बहार

हसरत अज़ीमाबादी




दुनिया का व दीं का हम को क्या होश
मस्त आए व बे-ख़बर गए हम

हसरत अज़ीमाबादी