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मेरी उस प्यारी झब से आँख लगी | शाही शायरी
meri us pyari jhab se aankh lagi

ग़ज़ल

मेरी उस प्यारी झब से आँख लगी

हसरत अज़ीमाबादी

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मेरी उस प्यारी झब से आँख लगी
उस सरापा अजब से आँख लगी

इश्क़ में ख़्वाब का ख़याल किसे
न लगी आँख जब से आँख लगी

ख़्वाब में भी न देखा हम ने लुत्फ़
किस सरापा ग़ज़ब से आँख लगी

जितने ख़ुश-चश्म हैं ज़माने में
रहती है मेरी सब से आँख लगी

रात हमसायों की न सुब्ह तलक
मेरी अफ़्ग़ान-ए-शब से आँख लगी

यार आता नज़र नहीं आता
है इधर मेरी कब से आँख लगी

रहती है उस निगाह-ए-काफ़िर की
रंजिश-ए-बे-सबब से आँख लगी

मुझ को मत देख है बला 'हसरत'
यार-ए-आशिक़-तलब से आँख लगी