आँख बीनाई गँवा बैठी तो
तेरी तस्वीर से मंज़र निकला
हम्माद नियाज़ी
आख़िरी बार मैं कब उस से मिला याद नहीं
बस यही याद है इक शाम बहुत भारी थी
हम्माद नियाज़ी
बस एक लम्हा तिरे वस्ल का मयस्सर हो
और उस विसाल के लम्हे को दाइमी किया जाए
हम्माद नियाज़ी
भरवा देना मिरे कासे को
मिरे कासे को भरवा देना
हम्माद नियाज़ी
दिखाई देने लगी थी ख़ुशबू
मैं फूल आँखों पे मल रहा था
हम्माद नियाज़ी
दिल के सूने सेहन में गूँजी आहट किस के पाँव की
धूप-भरे सन्नाटे में आवाज़ सुनी है छाँव की
हम्माद नियाज़ी
हार दिया है उजलत में
ख़ुद को किस आसानी से
हम्माद नियाज़ी
हम ऐसे लोग जो आइंदा ओ गुज़िश्ता हैं
हमारे अहद को मौजूद से तही किया जाए
हम्माद नियाज़ी
हम इस ख़ातिर तिरी तस्वीर का हिस्सा नहीं थे
तिरे मंज़र में आ जाए न वीरानी हमारी
हम्माद नियाज़ी