जो उस तरफ़ से इशारा कभी किया उस ने
मैं डूब जाऊँगा दरिया को पार करते हुए
ग़ुलाम मुर्तज़ा राही
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कहाँ तक उस की मसीहाई का शुमार करूँ
जहाँ है ज़ख़्म वहीं इंदिमाल है उस का
ग़ुलाम मुर्तज़ा राही
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