अब कौन जा के साहिब-ए-मिम्बर से ये कहे
क्यूँ ख़ून पी रहा है सितमगर शराब पी
फ़ाज़िल जमीली
मिरे लिए न रुक सके तो क्या हुआ
जहाँ कहीं ठहर गए हो ख़ुश रहो
फ़ाज़िल जमीली
मैं इक थका हुआ इंसान और क्या करता
तरह तरह के तसव्वुर ख़ुदा से बाँध लिए
फ़ाज़िल जमीली
मैं ही अपनी क़ैद में था और मैं ही एक दिन
कर के अपने आप को आज़ाद ले जाने लगा
फ़ाज़िल जमीली
मैं अपने आप से आगे निकलने वाला था
सो ख़ुद को अपनी नज़र से गिरा के बैठ गया
फ़ाज़िल जमीली
मैं अक्सर खो सा जाता हूँ गली-कूचों के जंगल में
मगर फिर भी तिरे घर की निशानी याद रखता हूँ
फ़ाज़िल जमीली
इस कॉकटेल का तो नशा ही कुछ और है
ग़म को ख़ुशी के साथ मिला कर शराब पी
फ़ाज़िल जमीली
इक तअल्लुक़ था जिसे आग लगा दी उस ने
अब मुझे देख रहा है वो धुआँ होते हुए
फ़ाज़िल जमीली
हमारे कमरे में उस की यादें नहीं हैं 'फ़ाज़िल'
कहीं किताबें कहीं रिसाले पड़े हुए हैं
फ़ाज़िल जमीली