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सुख़न जो उस ने कहे थे गिरह से बाँध लिए | शाही शायरी
suKHan jo usne kahe the girah se bandh liye

ग़ज़ल

सुख़न जो उस ने कहे थे गिरह से बाँध लिए

फ़ाज़िल जमीली

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सुख़न जो उस ने कहे थे गिरह से बाँध लिए
ख़याल उसी के थे सौ सौ तरह से बाँध लिए

वो बन-सँवर के निकलती तो छेड़ती थी सबा
फिर उस ने बाल ही अपने सबा से बाँध लिए

मिले बग़ैर वो हम से बिछड़ न जाए कहीं
ये वसवसे भी दिल-ए-मुब्तला से बाँध लिए

हमारे दिल का चलन भी तो कोई ठीक नहीं
कहाँ के अहद कहाँ की फ़ज़ा से बाँध लिए

वो अब किसी भी वसीले से हम को मिल जाए
सो हम ने अपने इरादे दुआ से बाँध लिए

मैं इक थका हुआ इंसान और क्या करता
तरह तरह के तसव्वुर ख़ुदा से बाँध लिए