ज़िंदगानी को अदम-आबाद ले जाने लगा
हर गुज़रता दिन किसी की याद ले जाने लगा
एक महफ़िल से उठाया है दिल-ए-नाशाद ने
एक महफ़िल में दिल-ए-नाशाद ले जाने लगा
किस तरफ़ से आ रहा है कारवाँ अस्बाब का
किस तरफ़ ये ख़ानुमाँ-बर्बाद ले जाने लगा
इक सितारा मिल गया था रात की तमसील में
आसमानों तक मिरी फ़रियाद ले जाने लगा
मैं ही अपनी क़ैद में था और मैं ही एक दिन
कर के अपने आप को आज़ाद ले जाने लगा
ग़ज़ल
ज़िंदगानी को अदम-आबाद ले जाने लगा
फ़ाज़िल जमीली