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बेदम शाह वारसी शायरी | शाही शायरी

बेदम शाह वारसी शेर

17 शेर

अब आदमी कुछ और हमारी नज़र में है
जब से सुना है यार लिबास-ए-बशर में है

बेदम शाह वारसी




ऐ जुनूँ क्यूँ लिए जाता है बयाबाँ में मुझे
जब तुझे आता है घर को मिरे सहरा करना

बेदम शाह वारसी




अपना तो ये मज़हब है काबा हो कि बुत-ख़ाना
जिस जा तुम्हें देखेंगे हम सर को झुका देंगे

बेदम शाह वारसी




बरहमन मुझ को बनाना न मुसलमाँ करना
मेरे साक़ी मुझे मस्त-ए-मय-ए-इरफ़ाँ करना

बेदम शाह वारसी




बेदम ये मोहब्बत है या कोई मुसीबत है
जब देखिए अफ़्सुर्दा जब देखिए जब मग़्मूम

बेदम शाह वारसी




देने वाले तुझे देना है तो इतना दे दे
कि मुझे शिकवा-ए-कोताही-ए-दामाँ हो जाए

बेदम शाह वारसी




हमारी ज़िंदगी तो मुख़्तसर सी इक कहानी थी
भला हो मौत का जिस ने बना रक्खा है अफ़्साना

बेदम शाह वारसी




जिस की इस आलम-ए-सूरत में है रंग-आमेज़ी
उसी तस्वीर का ख़ाका तो ये इंसान भी है

बेदम शाह वारसी




जो सुनता हूँ सुनता हूँ मैं अपनी ख़मोशी से
जो कहती है कहती है मुझ से मिरी ख़ामोशी

बेदम शाह वारसी