दुनिया की रविश देखी तिरी ज़ुल्फ़-ए-दोता में
बनती है ये मुश्किल से बिगड़ती है ज़रा में
अज़ीज़ हैदराबादी
आँखों में तिरी शक्ल है दिल में है तिरी याद
आए भी तो किस शान से फ़ुर्क़त के दिन आए
अज़ीज़ हैदराबादी
धड़कते हुए दिल के हम-राह मेरे
मिरी नब्ज़ भी चारा-गर देख लेते
अज़ीज़ हैदराबादी
देखता हूँ उन की सूरत देख कर
धूप में तारे नज़र आते हैं मुझे
अज़ीज़ हैदराबादी
दर्द सहने के लिए सदमे उठाने के लिए
उन से दिल अपना मुझे वापस तलब करना पड़ा
अज़ीज़ हैदराबादी
दम-ए-तकल्लुम किसी के आगे हम अपने दिल को भी देते हौके
मिलाते चुन चुन के लफ़्ज़ ऐसे सवाल गोया जवाब होता
अज़ीज़ हैदराबादी
बहुत कुछ देखना है आगे आगे
अभी दिल ने मिरे देखा ही क्या है
अज़ीज़ हैदराबादी
अयाँ या निहाँ इक नज़र देख लेते
किसी सूरत उन को मगर देख लेते
अज़ीज़ हैदराबादी
अभी कुछ है अभी कुछ है अभी कुछ
तिरी काफ़िर-नज़र क्या जाने क्या है
अज़ीज़ हैदराबादी