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क्यूँ ख़फ़ा हो क्यूँ इधर आते नहीं | शाही शायरी
kyun KHafa ho kyun idhar aate nahin

ग़ज़ल

क्यूँ ख़फ़ा हो क्यूँ इधर आते नहीं

अज़ीज़ हैदराबादी

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क्यूँ ख़फ़ा हो क्यूँ इधर आते नहीं
देखता हूँ तुम नज़र आते नहीं

वो ये कह कर दाग़ देते हैं मुझे
फूल से पहले समर आते नहीं

हम हैं वो मय-नोश पी कर भी कभी
मय-कदे से बे-ख़बर आते नहीं

देखता हूँ उन की सूरत देख कर
धूप में तारे नज़र आते नहीं

नींद तो क्या नींद के झोंके 'अज़ीज़'
हिज्र में वक़्त-ए-सहर आते नहीं