नहीं वो इतना भी पागल नहीं था
जो मर जाता मिरी वाबस्तगी में
आसिमा ताहिर
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शाम खुलती है तेरे आने से
लब पे तेरा सवाल रखती है
आसिमा ताहिर
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शहज़ादी के कानों में जो बात कही थी इक तू ने
ब'अद तिरे वो बात तिरे ही अफ़्सानों में गूँजती है
आसिमा ताहिर
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