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ये सोचा ही नहीं था तिश्नगी में | शाही शायरी
ye socha hi nahin tha tishnagi mein

ग़ज़ल

ये सोचा ही नहीं था तिश्नगी में

आसिमा ताहिर

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ये सोचा ही नहीं था तिश्नगी में
कहाँ रक्खूँगी लब मैं बेबसी में

तुम्हारी सम्त आने की तलब में
मैं रुकती ही नहीं हूँ बे-ख़ुदी में

दिल-ए-ख़ुश-फ़हम तुझ से कितने होंगे
निसार उस की तमन्ना की गली में

नहीं वो इतना भी पागल नहीं था
जो मर जाता मिरी वाबस्तगी में

मुझे अब 'आसिमा' चलना पड़ेगा
ख़ुद अपने आप ही की रहबरी में