ये सोचा ही नहीं था तिश्नगी में
कहाँ रक्खूँगी लब मैं बेबसी में
तुम्हारी सम्त आने की तलब में
मैं रुकती ही नहीं हूँ बे-ख़ुदी में
दिल-ए-ख़ुश-फ़हम तुझ से कितने होंगे
निसार उस की तमन्ना की गली में
नहीं वो इतना भी पागल नहीं था
जो मर जाता मिरी वाबस्तगी में
मुझे अब 'आसिमा' चलना पड़ेगा
ख़ुद अपने आप ही की रहबरी में
ग़ज़ल
ये सोचा ही नहीं था तिश्नगी में
आसिमा ताहिर