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पौ फटते ही ट्रेन की सीटी जब कानों में गूँजती है | शाही शायरी
pau phaTte hi train ki siTi jab kanon mein gunjti hai

ग़ज़ल

पौ फटते ही ट्रेन की सीटी जब कानों में गूँजती है

आसिमा ताहिर

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पौ फटते ही ट्रेन की सीटी जब कानों में गूँजती है
सर्वत तेरी याद मिरे दिल के ख़ानों में गूँजती है

शहज़ादी के हिज्र में लिख्खे कुछ लफ़्ज़ों की हैरानी
शहज़ादी के घर तक आते मय-ख़ानों में गूँजती है

शहज़ादी के कानों में जो बात कही थी इक तू ने
ब'अद तिरे वो बात तिरे ही अफ़्सानों में गूँजती है

जान से जाने से पहले इक आह भरी होगी तू ने
शाम ढले जो दूर कहीं अब वीरानों में गूँजती है