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अख़्तर अंसारी अकबराबादी शायरी | शाही शायरी

अख़्तर अंसारी अकबराबादी शेर

22 शेर

चुप रहो तो पूछता है ख़ैर है
लो ख़मोशी भी शिकायत हो गई

अख़्तर अंसारी अकबराबादी




बंदगी तेरी ख़ुदाई से बहुत है आगे
नक़्श-ए-सज्दा है तिरे नक़्श-ए-क़दम से पहले

अख़्तर अंसारी अकबराबादी




बचा बचा के गुज़रना है दामन-ए-हस्ती
शरीक-ए-ख़ार भी कुछ जश्न-ए-नौ-बहार में हैं

अख़्तर अंसारी अकबराबादी




अजीब भूल-भुलय्याँ है शाहराह-ए-हयात
भटकने वाले यहाँ जुस्तुजू की बात न कर

अख़्तर अंसारी अकबराबादी