चुप रहो तो पूछता है ख़ैर है
लो ख़मोशी भी शिकायत हो गई
अख़्तर अंसारी अकबराबादी
बंदगी तेरी ख़ुदाई से बहुत है आगे
नक़्श-ए-सज्दा है तिरे नक़्श-ए-क़दम से पहले
अख़्तर अंसारी अकबराबादी
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बचा बचा के गुज़रना है दामन-ए-हस्ती
शरीक-ए-ख़ार भी कुछ जश्न-ए-नौ-बहार में हैं
अख़्तर अंसारी अकबराबादी
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अजीब भूल-भुलय्याँ है शाहराह-ए-हयात
भटकने वाले यहाँ जुस्तुजू की बात न कर
अख़्तर अंसारी अकबराबादी
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