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कैफ़ियत क्या थी यहाँ आलम-ए-ग़म से पहले | शाही शायरी
kaifiyat kya thi yahan aalam-e-gham se pahle

ग़ज़ल

कैफ़ियत क्या थी यहाँ आलम-ए-ग़म से पहले

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

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कैफ़ियत क्या थी यहाँ आलम-ए-ग़म से पहले
कौन आया था तिरी बज़्म में हम से पहले

सब करम है तिरे अंदाज़-ए-सितम से ऐ दोस्त
ज़ौक़-ए-ग़म दिल को न था तेरे सितम से पहले

बंदगी तेरी ख़ुदाई से बहुत है आगे
नक़्श-ए-सज्दा है तिरे नक़्श-ए-क़दम से पहले

क़ल्ब-ए-इंसाँ को है अब फिर उसी आलम की तलाश
तेरी महफ़िल थी जहाँ दैर-ओ-हरम से पहले

हम से मंसूर ज़माने में कहाँ हैं 'अख़्तर'
दार तक आ नहीं सकता कोई हम से पहले