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नदीम बाग़ में जोश-ए-नुमू की बात न कर | शाही शायरी
nadim bagh mein josh-e-numu ki baat na kar

ग़ज़ल

नदीम बाग़ में जोश-ए-नुमू की बात न कर

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

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नदीम बाग़ में जोश-ए-नुमू की बात न कर
बहार आ तो गई रंग-ओ-बू की बात न कर

अजीब भूल-भुलय्याँ है शाहराह-ए-हयात
भटकने वाले यहाँ जुस्तुजू की बात न कर

तबाह कर न मज़ाक़-ए-जुनूँ की ख़ुद्दारी
दिल-ए-तबाह किसी तुंद-ख़ू की बात न कर

ख़ुद अपने तर्ज़-ए-अमल को सँवार और सँवार
मिरे रफ़ीक़ तरीक़-ए-अदू की बात न कर

गुरेज़-ए-हुस्न को अंदाज़-ए-हुस्न कहते हैं
नज़र से देख मगर ख़ूब-रू की बात न कर

ये बर्क़-ए-हुस्न जलाती तो है मगर नासेह
वो और शय है मिरे शो'ला-ख़ू की बात न कर

ये मय-कदे की फ़ज़ा कह रही है ऐ 'अख़्तर'
कि तिश्नगी में भी जाम-ओ-सुबू की बात न कर