क़तरा ठीक है दरिया होने में नुक़सान बहुत है
देख तो कैसे डूब रहा है मेरा लश्कर मुझ में
अहमद शहरयार
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रातों को जागते हैं इसी वास्ते कि ख़्वाब
देखेगा बंद आँखें तो फिर लौट जाएगा
अहमद शहरयार
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समाई किस तरह मेरी आँखों की पुतलियों में
वो एक हैरत जो आईने से बहुत बड़ी थी
अहमद शहरयार
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तुझ से भी कब हुई तदबीर मिरी वहशत की
तू भी मुट्ठी में कहाँ भेंच सका पानी को
अहमद शहरयार
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तू मौजूद है मैं मादूम हूँ इस का मतलब ये है
तुझ में जो नापैद है प्यारे वो है मयस्सर मुझ में
अहमद शहरयार
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