निगह बुलंद सुख़न दिल-नवाज़ जाँ पुर-सोज़
यही है रख़्त-ए-सफ़र मीर-ए-कारवाँ के लिए
अल्लामा इक़बाल
दिल की राहें जुदा हैं दुनिया से
कोई भी राहबर नहीं होता
फ़रहत कानपुरी
मुझे ऐ रहनुमा अब छोड़ तन्हा
मैं ख़ुद को आज़माना चाहता हूँ
हैरत गोंडवी
टैग:
| Rahbar |
| 2 लाइन शायरी |