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कोई भी हम-सफ़र नहीं होता | शाही शायरी
koi bhi ham-safar nahin hota

ग़ज़ल

कोई भी हम-सफ़र नहीं होता

फ़रहत कानपुरी

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कोई भी हम-सफ़र नहीं होता
दर्द क्यूँ रात भर नहीं होता

राह-ए-दिल ख़ुद-ब-ख़ुद है मिल जाती
कोई भी राहबर नहीं होता

आह का भी न ज़िक्र कर ऐ दिल
आह में भी असर नहीं होता

दिल को आसूदगी भी क्यूँकर हो
ग़म से शीर-ओ-शकर नहीं होता

आह ऐ बे-ख़बर ये बे-ख़बरी
दिल-ए-नादाँ ख़बर नहीं होता

दिल की राहें जुदा हैं दुनिया से
कोई भी राहबर नहीं होता

अब तो महफ़िल से चल दिया 'फ़रहत'
अब किसी का गुज़र नहीं होता