EN اردو
एहसान शायरी | शाही शायरी

एहसान

4 शेर

ये है कि झुकाता है मुख़ालिफ़ की भी गर्दन
सुन लो कि कोई शय नहीं एहसान से बेहतर

अकबर इलाहाबादी




हम से ये बार-ए-लुत्फ़ उठाया न जाएगा
एहसाँ ये कीजिए कि ये एहसाँ न कीजिए

हफ़ीज़ जालंधरी




इस दश्त पे एहसाँ न कर ऐ अब्र-ए-रवाँ और
जब आग हो नम-ख़ुर्दा तो उठता है धुआँ और

हिमायत अली शाएर




जिस ने कुछ एहसाँ किया इक बोझ सर पर रख दिया
सर से तिनका क्या उतारा सर पे छप्पर रख दिया

anyone who did a favour placed a burden on my head
removed a straw from over me, and placed a mountain instead

जलाल लखनवी