अर्ज़-ए-अहवाल को गिला समझे
क्या कहा मैं ने आप क्या समझे
the mention of my condition was a complaint thought to be
what was it I said to you, you did not follow me
दाग़ देहलवी
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साज़-ए-उल्फ़त छिड़ रहा है आँसुओं के साज़ पर
मुस्कुराए हम तो उन को बद-गुमानी हो गई
जिगर मुरादाबादी
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बद-गुमानी को बढ़ा कर तुम ने ये क्या कर दिया
ख़ुद भी तन्हा हो गए मुझ को भी तन्हा कर दिया
नज़ीर बनारसी
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इक ग़लत-फ़हमी ने दिल का आइना धुँदला दिया
इक ग़लत-फ़हमी से बरसों की शनासाई गई
one misunderstanding fogged the mirror of the heart
one misunderstanding rent lifelong friends apart
शहबाज़ नदीम ज़ियाई
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