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तुफ़ैल चतुर्वेदी शायरी | शाही शायरी

तुफ़ैल चतुर्वेदी शेर

10 शेर

एक साए की तलब में ज़िंदगी पहुँची यहाँ
दूर तक फैला हुआ है मुझ में मंज़र धूप का

तुफ़ैल चतुर्वेदी




हम बुज़ुर्गों की रिवायत से जुड़े हैं भाई
नेकियाँ कर के कभी फल नहीं माँगा करते

तुफ़ैल चतुर्वेदी




हर तरफ़ फैला हुआ बे-सम्त बे-मंज़िल सफ़र
भीड़ में रहना मगर ख़ुद को अकेला देखना

तुफ़ैल चतुर्वेदी




कभी ज़माना था उस की तलब में रहते थे
और अब ये हाल है ख़ुद को उसी से माँगते हैं

तुफ़ैल चतुर्वेदी




नफ़रतों का अक्स भी पड़ने न देना ज़ेहन पर
ये अँधेरा जाने कितनों का उजाला खा गया

तुफ़ैल चतुर्वेदी




सभी ज़ख़्मों के टाँके खुल गए हैं
हमें हँसना बहुत महँगा पड़ा है

तुफ़ैल चतुर्वेदी




सफ़र अंजाम तक पहुँचे तो कैसे
मैं अपने रास्ते में ख़ुद खड़ा हूँ

तुफ़ैल चतुर्वेदी




उस के वा'दे के एवज़ दे डाली अपनी ज़िंदगी
एक सस्ती शय का ऊँचे भाव सौदा कर लिया

तुफ़ैल चतुर्वेदी




वो मौसमों पर उछालता है सवाल कितने
कभी तो यूँ हो कि आसमाँ से जवाब बरसे

तुफ़ैल चतुर्वेदी