आवाज़ हूँ उभर के जो सहरा में खो गई
या ज़िंदगी के बहर में मौज-ए-ख़याल हूँ
तुफ़ैल बिस्मिल
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फिर से बिखरी है तिरी ज़ुल्फ़ मिरे शानों पर
वक़्त आया है गए वक़्त को लौटाने का
तुफ़ैल बिस्मिल
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वक़्त के मक़्तल में हम हैं दोस्तो
वक़्त इक दिन हम को भी खा जाएगा
तुफ़ैल बिस्मिल
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