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जो भी तेरी आँख को भा जाएगा | शाही शायरी
jo bhi teri aankh ko bha jaega

ग़ज़ल

जो भी तेरी आँख को भा जाएगा

तुफ़ैल बिस्मिल

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जो भी तेरी आँख को भा जाएगा
जान-ए-जाँ महबूब समझा जाएगा

नाम ज़ुल्फ़ों का न लेना भूल कर
दिल का पंछी दाम में आ जाएगा

वक़्त के मक़्तल में हम हैं दोस्तो
वक़्त इक दिन हम को भी खा जाएगा

वो समझता है मिरी हालत मगर
मैं अगर कह दूँ तो शरमा जाएगा

कुछ न कहना राज़-दाँ बस देखना
आँख से वो मुद्दआ पा जाएगा

कह रहे हैं वो न 'बिस्मिल' यूँ तड़प
तुझ पे ज़ालिम दिल मिरा आ जाएगा