जो भी तेरी आँख को भा जाएगा
जान-ए-जाँ महबूब समझा जाएगा
नाम ज़ुल्फ़ों का न लेना भूल कर
दिल का पंछी दाम में आ जाएगा
वक़्त के मक़्तल में हम हैं दोस्तो
वक़्त इक दिन हम को भी खा जाएगा
वो समझता है मिरी हालत मगर
मैं अगर कह दूँ तो शरमा जाएगा
कुछ न कहना राज़-दाँ बस देखना
आँख से वो मुद्दआ पा जाएगा
कह रहे हैं वो न 'बिस्मिल' यूँ तड़प
तुझ पे ज़ालिम दिल मिरा आ जाएगा
ग़ज़ल
जो भी तेरी आँख को भा जाएगा
तुफ़ैल बिस्मिल