फ़ुरात-ए-चश्म पे है कर्बला की तुग़्यानी
दरून-ए-कूफ़ा-ए-दिल ईद करने आया हूँ
तफ़ज़ील अहमद
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क्या शय है खींच लेती है शब को सर-ए-फ़लक
फिर सुब्ह जोड़ती है दोबारा ज़मीन से
तफ़ज़ील अहमद
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