EN اردو
सय्यद काशिफ़ रज़ा शायरी | शाही शायरी

सय्यद काशिफ़ रज़ा शेर

5 शेर

इस क़दर ग़ौर से देखा है सरापा उस का
याद आता ही नहीं अब मुझे चेहरा उस का

सय्यद काशिफ़ रज़ा




कभी कभी मुझे लगता है वो नहीं है वो
मगर कभी कभी लगता है वो वही तो नहीं

सय्यद काशिफ़ रज़ा




मैं अपने-आप से कम भी हूँ और ज़ियादा भी
वो जानता भी है मुझ को तो जानता क्या है

सय्यद काशिफ़ रज़ा




उस पे बस ऐसे ही घबराई हुई फिरती थी
आँख से हुस्न सिमटता ही नहीं था उस का

सय्यद काशिफ़ रज़ा




वो जो मक़ाम है तेरा मिरी कहानी में
उसी मक़ाम पे मैं तेरे तज़्किरे में रहूँ

सय्यद काशिफ़ रज़ा