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तिरी जुदाई में ये दिल बहुत दुखी तो नहीं | शाही शायरी
teri judai mein ye dil bahut dukhi to nahin

ग़ज़ल

तिरी जुदाई में ये दिल बहुत दुखी तो नहीं

सय्यद काशिफ़ रज़ा

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तिरी जुदाई में ये दिल बहुत दुखी तो नहीं
कि उस के वास्ते ये रुत कोई नई तो नहीं

तुम अपने अपने लगे थे वगरना आँखों में
इक और ख़्वाब सजाने की ताब थी तो नहीं

तुम्हारे लब पे खिला है तो वादा है तस्लीम
वगरना अपने भरोसे की तुम रही तो नहीं

तिरे बग़ैर न जीने का अहद पूरा किया
तिरे बग़ैर जो काटी वो ज़िंदगी तो नहीं

कभी कभी मुझे लगता है वो नहीं है वो
मगर कभी कभी लगता है वो वही तो नहीं