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सय्यद अनवार अहमद शायरी | शाही शायरी

सय्यद अनवार अहमद शेर

7 शेर

अपने लिए भी कोई रिआयत रवा नहीं
इस मुंसिफ़ी की ख़ू ने तो सफ़्फ़ाक कर दिया

सय्यद अनवार अहमद




बोली लगी मता-ए-हुनर की तो अहल-ए-फ़न
जल्दी में अपने ख़्वाब भी नीलाम कर गए

सय्यद अनवार अहमद




फ़क़ीह-ए-शहर से कुछ ख़ास दुश्मनी तो नहीं
फ़क़ीह-ए-शहर से लेकिन ठनी सी रहती है

सय्यद अनवार अहमद




इन से आवाज़-ए-कर्ब आती है
ज़र्द पत्तों पे मत चले कोई

सय्यद अनवार अहमद




इस पल दो पल की हस्ती में
क्या तेरा है क्या मेरा है

सय्यद अनवार अहमद




कुछ मारके हमारे भी हम तक ही रह गए
गुमनाम इक सिपाही की ख़िदमात की तरह

सय्यद अनवार अहमद




वो मुझ से पूछने लगा मेरे सवाल अब
और मैं भी दे रहा हूँ जो इस के जवाब थे

सय्यद अनवार अहमद