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शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी शायरी | शाही शायरी

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी शेर

10 शेर

चाहे दीवाना कहें या लोग सौदाई कहें
आ गए हम सर को ले कर पत्थरों के शहर में

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी




हिज्र में यूँ बहते हैं आँसू
जैसे रिम-झिम बरसे सावन

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी




इक दाइमी सुकूँ की तमन्ना है रात दिन
तंग आ गए हैं गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर से हम

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी




कहीं आँसुओं से लिखा हुआ कहीं आँसुओं से मिटा हुआ
लौह-ए-दिल पे जिस के निशान हैं वही एक नाम क़ुबूल है

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी




कोई हम से ख़फ़ा सा लगता है
वर्ना दिल क्यूँ बुझा सा लगता है

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी




मोहब्बत को बहुत होती है ग़ैरत
ख़ता उन की है मैं शर्मा रहा हूँ

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी




पथराई आँखों में देखो क्या क्या रंग दिखाता आँसू
ठहर गया तो इक क़तरा सा बह निकला तो दरिया आँसू

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी




साथ तेरा रहा नहीं बाक़ी
वर्ना दुनिया में क्या नहीं बाक़ी

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी




सुकूँ-अफ़ज़ा बहुत है दर्द-ए-उल्फ़त
क़रार अब उम्र भर आए न आए

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी