EN اردو
शहपर रसूल शायरी | शाही शायरी

शहपर रसूल शेर

4 शेर

दूसरों के ज़ख़्म बुन कर ओढ़ना आसाँ नहीं
सब क़बाएँ हेच हैं मेरी रिदा के सामने

शहपर रसूल




मैं ने भी देखने की हद कर दी
वो भी तस्वीर से निकल आया

शहपर रसूल




मुझे भी लम्हा-ए-हिजरत ने कर दिया तक़्सीम
निगाह घर की तरफ़ है क़दम सफ़र की तरफ़

शहपर रसूल




रेख़्ता का इक नया मज्ज़ूब है 'शहपर' रसूल
शोहरत उस के नाम पर इक नंग है बोहतान है

शहपर रसूल