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शाहिद मीर शायरी | शाही शायरी

शाहिद मीर शेर

18 शेर

आँगन है जल-थल बहुत दीवारों पर घास
घर के अंदर भी मिला 'शाहिद' को बनवास

शाहिद मीर




और कुछ भी मुझे दरकार नहीं है लेकिन
मेरी चादर मिरे पैरों के बराबर कर दे

शाहिद मीर




बुझती हुई सी एक शबीह ज़ेहन में लिए
मिटती हुई सितारों की सफ़ देखते रहे

शाहिद मीर




दर्द है दौलत की तरह ग़म ठहरा जागीर
अपनी इस जागीर में ख़ुश हैं 'शाहिद-मीर'

शाहिद मीर




गँवाए बैठे हैं आँखों की रौशनी 'शाहिद'
जहाँ-पनाह का इंसाफ़ देखने वाले

शाहिद मीर




हर इक शय बे-मेल थी कैसे बनती बात
आँखों से सपने बड़े नींद से लम्बी रात

शाहिद मीर




जीवन जीना कठिन है विष पीना आसान
इंसाँ बन कर देख लो ओ 'शंकर' भगवान

शाहिद मीर




काग़ज़ पर लिख दीजिए अपने सारे भेद
दिल में रहे तो आँच से हो जाएँगे छेद

शाहिद मीर




पहले तो छीन ली मिरी आँखों की रौशनी
फिर आईने के सामने लाया गया मुझे

शाहिद मीर