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इक सब्ज़ रंग बाग़ दिखाया गया मुझे | शाही शायरी
ek sabz rang bagh dikhaya gaya mujhe

ग़ज़ल

इक सब्ज़ रंग बाग़ दिखाया गया मुझे

शाहिद मीर

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इक सब्ज़ रंग बाग़ दिखाया गया मुझे
फिर ख़ुश्क रास्तों पे चलाया गया मुझे

तय हो चुके थे आख़िरी साँसों के मरहले
जब मुज़्दा-ए-हयात सुनाया गया मुझे

पहले तो छीन ली मिरी आँखों की रौशनी
फिर आइने के सामने लाया गया मुझे

रक्खे थे उस ने सारे स्विच अपने हाथ में
बे-वक़्त ही जलाया बुझाया गया मुझे

चारों तरफ़ बिछी हैं अँधेरों की चादरें
शायद अभी फ़ुज़ूल जगाया गया मुझे

निकले हुए थे ढूँडने ख़ूँ-ख़्वार जानवर
काँटों की झाड़ियों में छुपाया गया मुझे

इक लम्हा मुस्कुराने की क़ीमत न पूछिए
बे-इख़्तियार पहले रुलाया गया मुझे