हर बज़्म क्यूँ नुमाइश-ए-ज़ख़्म-ए-हुनर बने
हर भेद अपने दोस्तों के दरमियाँ न खोल
सलीम शाहिद
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
हर लहज़ा उस के पाँव की आहट पे कान रख
दरवाज़े तक जो आया है अंदर भी आएगा
सलीम शाहिद
टैग:
| 2 लाइन शायरी |