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साहिर भोपाली शायरी | शाही शायरी

साहिर भोपाली शेर

3 शेर

बाँध के सफ़ हों सब खड़े तेग़ के साथ सर झुके
आज तो क़त्ल-गाह में धूम से हो नमाज़-ए-इश्क़

साहिर भोपाली




तलातुम का एहसान क्यूँ हम उठाएँ
हमें डूबने को किनारा बहुत है

why should I take a favour, from the stormy sea
to sink the shoreside shallows do suffice for me

साहिर भोपाली




वफ़ा तो कैसी जफ़ा भी नहीं है अब हम पर
अब इतना सख़्त मोहब्बत से इंतिक़ाम न ले

साहिर भोपाली