बाँध के सफ़ हों सब खड़े तेग़ के साथ सर झुके
आज तो क़त्ल-गाह में धूम से हो नमाज़-ए-इश्क़
साहिर भोपाली
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तलातुम का एहसान क्यूँ हम उठाएँ
हमें डूबने को किनारा बहुत है
why should I take a favour, from the stormy sea
to sink the shoreside shallows do suffice for me
साहिर भोपाली
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वफ़ा तो कैसी जफ़ा भी नहीं है अब हम पर
अब इतना सख़्त मोहब्बत से इंतिक़ाम न ले
साहिर भोपाली
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