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सहबा लखनवी शायरी | शाही शायरी

सहबा लखनवी शेर

3 शेर

कारवाँ के चलने से कारवाँ के रुकने तक
मंज़िलें नहीं यारो रास्ते बदलते हैं

सहबा लखनवी




कितने दीप बुझते हैं कितने जलते हैं
अज़्म-ए-ज़िंदगी ले कर फिर भी लोग चलते हैं

सहबा लखनवी




मौज मौज तूफ़ाँ है मौज मौज साहिल है
कितने डूब जाते हैं कितने बच निकलते हैं

सहबा लखनवी