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सफ़ी लखनवी शायरी | शाही शायरी

सफ़ी लखनवी शेर

9 शेर

बनावट हो तो ऐसी हो कि जिस से सादगी टपके
ज़ियादा हो तो असली हुस्न छुप जाता है ज़ेवर से

सफ़ी लखनवी




दें भी जवाब-ए-ख़त कि न दें क्या ख़बर मुझे
क्यूँ अपने साथ ले न गया नामा-बर मुझे

सफ़ी लखनवी




देखे बग़ैर हाल ये है इज़्तिराब का
क्या जाने क्या हो पर्दा जो उट्ठे नक़ाब का

सफ़ी लखनवी




ग़ज़ल उस ने छेड़ी मुझे साज़ देना
ज़रा उम्र-ए-रफ़्ता को आवाज़ देना

सफ़ी लखनवी




जनाज़ा रोक कर मेरा वो इस अंदाज़ से बोले
गली हम ने कही थी तुम तो दुनिया छोड़े जाते हो

सफ़ी लखनवी




कल हम आईने में रुख़ की झुर्रियाँ देखा किए
कारवान-ए-उम्र-ए-रफ़्ता का निशाँ देखा किए

सफ़ी लखनवी




ख़त्म हो जाते जो हुस्न ओ इश्क़ के नाज़ ओ अदा
शायरी भी ख़त्म हो जाती नबुव्वत की तरह

सफ़ी लखनवी




मिरी नाश के सिरहाने वो खड़े ये कह रहे हैं
इसे नींद यूँ न आती अगर इंतिज़ार होता

सफ़ी लखनवी




पैग़ाम ज़िंदगी ने दिया मौत का मुझे
मरने के इंतिज़ार में जीना पड़ा मुझे

सफ़ी लखनवी