अब इस से क्या ग़रज़ ये हरम है कि दैर है
बैठे हैं हम तो साया-ए-दीवार देख कर
रविश सिद्दीक़ी
बुतान-ए-शहर को ये ए'तिराफ़ हो कि न हो
ज़बान-ए-इश्क़ की सब गुफ़्तुगू समझते हैं
रविश सिद्दीक़ी
दर्द आलूदा-ए-दरमाँ था 'रविश'
दर्द को दर्द बनाया हम ने
रविश सिद्दीक़ी
दिल गवारा नहीं करता है शिकस्त-ए-उम्मीद
हर तग़ाफ़ुल पे नवाज़िश का गुमाँ होता है
रविश सिद्दीक़ी
हज़ार हुस्न दिल-आरा-ए-दो-जहाँ होता
नसीब इश्क़ न होता तो राएगाँ होता
रविश सिद्दीक़ी
हज़ार रुख़ तिरे मिलने के हैं न मिलने में
किसे फ़िराक़ कहूँ और किसे विसाल कहूँ
रविश सिद्दीक़ी
इश्क़ ख़ुद अपनी जगह मज़हर-ए-अनवार-ए-ख़ुदा
अक़्ल इस सोच में गुम किस को ख़ुदा कहते हैं
रविश सिद्दीक़ी
जो राह अहल-ए-ख़िरद के लिए है ला-महदूद
जुनून-ए-इश्क़ में वो चंद गाम होती है
रविश सिद्दीक़ी
ख़ून-ए-दिल सर्फ़ कर रहा हूँ 'रविश'
ख़ूब से नक़्श-ए-ख़ूब-तर के लिए
रविश सिद्दीक़ी