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रशीद लखनवी शायरी | शाही शायरी

रशीद लखनवी शेर

24 शेर

ऐ गुल-अंदाम ये है फस्ल-ए-जवानी का उरूज
हुस्न का रंग टपकने को है रुख़्सारों से

रशीद लखनवी




अपनी वहशत से है शिकवा दूसरे से क्या गिला
हम से जब बैठा न जाए कू-ए-जानाँ क्या करे

रशीद लखनवी




बुतों के दिल में हमारी कुछ अब हुई है जगह
ख़ुदा ने रहम किया वर्ना मर गए होते

रशीद लखनवी




देखिए लाज़िम-ओ-मलज़ूम इसे कहते हैं
दिल है दाग़ों के लिए दाग़ मिरे दल के लिए

रशीद लखनवी




दिल है शौक़-ए-वस्ल में मुज़्तर नज़र मुश्ताक़-ए-दीद
जो है मशग़ूल अपनी अपनी सई-ए-ला-हासिल में है

रशीद लखनवी




दोनों आँखें दिल जिगर हैं इश्क़ होने में शरीक
ये तो सब अच्छे रहेंगे मुझ पर इल्ज़ाम आएगा

रशीद लखनवी




गए थे हज़रत-ए-ज़ाहिद तो ज़र्द था चेहरा
शराब-ख़ाने से निकले तो सुर्ख़-रू निकले

रशीद लखनवी




हँस हँस के कह रहा है जलाना सवाब है
ज़ालिम ये मेरा दिल है चराग़-ए-हरम नहीं

रशीद लखनवी




हमारी ज़िंदगी-ओ-मौत की हो तुम रौनक़
चराग़-ए-बज़्म भी हो और चराग़-ए-फ़न भी हो

रशीद लखनवी